Rahulwebtech.COM-Online Share Marketing, Internet Tips aur Tricks in Hindii स्वामी विवेकानन्द के शैक्षिक विचार क्या क्या थे?

स्वामी विवेकानन्द के शैक्षिक विचार क्या क्या थे?

 स्वामी विवेकानन्द भारतीय दर्शन के महान् पण्डित थे । उन्होंने वेदान्त को व्यावहारिक रूप प्रदान किया । उनके विचार उनकी पुस्तकों में पढ़ने को मिलते हैं । उनके क्रियाकलाप रामकृष्ण मिशन के कल्याण कार्यों में देखे जा सकते हैं । शिक्षा के प्रति उनका दृष्टिकोण व्यापक था । 

1. शिक्षा का अर्थ - स्वामी ने एक बार कहा था , " मैं किसी बात को कभी परिभाषा नहीं करता हूँ । फिर भी शिक्षा की व्याख्या शक्ति के विकास के रूप में की जा सकती है । ' ' विवेकानन्द वेदान्ती थे इसलिए वे मनुष्य को जन्म से पूर्ण मानते थे । इसी पूर्णता की अभिव्यक्ति को वे शिक्षा कहते हैं । स्वामी जी ने अपने शब्दों में शिक्षा का अर्थ इस प्रकार बताया है , " शिक्षा मनुष्य को अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति है । " 

स्वामीजी का कथन है , शिक्षा उस जानकारी के समुदाय का नाम नहीं है जो तुम्हारे मस्तिष्क में भर दिया गया है और वहाँ पड़े - पड़े तुम्हारी सारी जिन्दगी भर बिना पनाए सड़ रहा है । हमें तो भावों या विचारों को ऐसे आत्मसात कर लेना चाहिए जिससे जीवन निर्माण हो , मनुष्यत्व आवे और चरित्र गठन हो । एक ही वस्तु होती है तो पुस्तकालय संचार के सबसे बड़े संत और विश्वकोष ही ऋषि बन जाते । "

2. शिक्षा के उद्देश्य – स्वामीजी ने शिक्षा का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा है , " सभी शिक्षाओं का , अभ्यास का उद्देश्य मनुष्य निर्माण ही है । समस्त अभ्यासों का अन्तिम ध्येय मनुष्य का विकास करना है । जिस अभ्यास के द्वारा मनुष्य की इच्छा शक्ति का प्रवाह और आविष्कार संयमित होकर फलदायी बन सके , उसी का नाम शिक्षा है । 

" स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं— 

( i ) शारीरिक विकास ( Physical Development ) — स्वामीजी शारीरिक व्यायाम की आवश्यकता पर अत्यधिक बल देते थे । एक बार उन्होंने अपने शिष्य से कहा था— " तुम्हें शरीर को अत्यधिक शक्तिशाली बनाने की विधि जाननी चाहिए । " इस प्रकार उनके अनुसार शिक्षा का प्रथम उद्देश्य शारीरिक विकास करना है 

( ii ) मानसिक विकास ( Mental Development ) — स्वामीजी के अनुसार शिक्षा को बालक का मानसिक विकास करना चाहिए । उनका कहना था कि बालक बहुत कुछ पहले से ही जानता है । शिक्षा के द्वारा बालक की मानसिक शक्तियों का विकास किया जाना चाहिए । इस प्रकार शिक्षा का दूसरा उद्देश्य बालक का मानसिक विकास करना है । 

( iii ) नैतिक विकास ( Moral Development ) - शिक्षा का उद्देश्य बालकों का नैतिक विकास होना चाहिए । किसी देश का उत्थान अच्छे नागरिकों से होता है । अतः नागरिकों का नैतिक विकास शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए । 

( iv ) आध्यात्मिक विकास ( Spritual Development ) — स्वामीजी के अनुसार शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य बालक का आध्यात्मिक विकास करना है । शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिए कि वह बालक आध्यात्मिक विकास करे । 

( v ) चरित्र निर्माण ( Character Formation ) – शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य बालकों का चरित्र निर्माण करना है । विवेकानन्द के अनुसार चरित्र - विहीन शिक्षा व्यर्थ है । शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिए कि वह बालकों के चरित्र - निर्माण में सहायता करे । 

( vi ) विश्व बन्धुत्व की भावना का विकास ( Development of Universal Brotherhood ) — स्वामीजी शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में विश्व चेतना तथा विश्वबन्धुतः के गुणों का विकास करना भी बताते थे । उनके अनुसार व्यक्ति इस भावना से स्वतंत्रता , विरक्ति तथा आत्म - त्याग की ओर बढ़ता है । शिक्षा के द्वारा इस अतिरिक्त शक्ति का ज्ञान देना परम आवश्यक है । इसी से अनेक चिन्ताओं से छुटकारा मिल सकता है । 

( vii ) आत्म - त्याग की भावना का विकास ( Development of Universal Self Sacrifice )- विवेकानन्दजी ने शिक्षा का उद्देश्य आत्म - त्याग की भावना का विकास करना भी बताया है । उनके अनुसार जब तक व्यक्ति में इस भावना का विकास नहीं होता , वह दूसरों का उपकार नहीं कर सकता । 

( viii ) व्यावसायिक क्षमता का विकास ( Development of Vocational Efficiency ) — यह सत्य है कि जब तक बालक को व्यावसायिक शिक्षा नहीं मिलती , वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता । इसलिए शिक्षा का एक उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करके बालक को अपने पैरों पर खड़ा होने की क्षमता प्रदान करना है । स्वामी जी उसी शिक्षा को सच्ची शिक्षा मानते थे जो बालक को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखा सके । 

3. पाठ्यक्रम ( Curriculum ) -स्वामी विवेकानन्द ने अपने द्वारा प्रतिपादित पाठ्यक्रम में सभी व्यावहारिक विषयों का स्थान दिया है । विवेकानन्द के अनुसार जीवन का चरम लक्ष्य आध्यात्मिक विकास करना है । अतः उन्होंने पाठ्यक्रम में आध्यात्मिक विषयों का प्रमुख स्थान दिया है । परन्तु उन्होंने आध्यात्मिक विषयों के साथ - साथ लौकिक विषयों की भी उतनी ही उपयोगिता समझी । एक स्थान पर विवेकानन्द ने कहा है , " यह अधिक उचित होगा , यदि लोगों को थोड़ी तकनीकी शिक्षा मिल जाए जिससे ौकरी की खोऊ में इधर - उधर भटकने के स्थान पर किसी कार्य में लग सकें और जीविकोपार्जन कर सकें । " स्वामीजी ने विज्ञान को भी अपने पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया परन्तु इस बात पर बल दिया कि विज्ञान का वेदान्त के साथ समन्वय किया जाए । औद्योगीकरण के दोषों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने कहा कि वेदांत का सहारा लेकर उनको दूर किया जा सकता है । स्वामीजी कला को भी उपयोगी विषय मानते थे । उनका कथन था " एशियावासियों की आत्मा ही कलामय है । एशिया के निवासी किसी भी कला रहित वस्तु का उपयोग नहीं करते । क्या वे नहीं जानते कि कला हमारे लिए धर्म का ही एक अंग है । " विवेकानन्द ने बालक के लिए शारीरिक शिक्षा को भी आवश्यक माना है । उनका कथन है , “ तुमको शरीर को अत्यधिक शक्तिशाली बनाने की विधि का ज्ञान होना चाहिए । यही शिक्षा तुमको दूसरों को भी देनी चाहिए । " अनुसार शिक्षा के उद्देश्य बताइए ।

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