गृह-शिल्प का महत्व
गृह-शिल्प की शिक्षा पारिवारिक जीवन की शिक्षा है। घर तथा परिवार देश की प्रगति को प्रदर्शित करते हैं। सुखी घर तथा पारिवारिक जीवन अपने सदस्यों में उत्तम नागरिकता के गुण उत्पन्न करते हैं, परस्पर आदर भाव का विकास करते हैं, सन्तुष्टि, स्वास्थ्य एवं सहयोग की भावना उत्पन्न करते हैं, स्वस्थ व्यक्तित्व का विकास करते तथा सदस्यों में कार्यक्षमता का विकास करते हैं। गृह-शिल्प का मुख्य उद्देश्य जीवन की प्रगति तथा अधिकतम प्रसन्नता प्राप्त करना है। व्यक्ति के जीवन के आधार पर गृह का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, अतः गृह-शिल्प जीवन की शिक्षा है।
भारतीय संस्कृति में गृह निर्माण को गृहिणी की कला माना गया है। परिवार में कन्या को 64 कलाओं में प्रशिक्षण देकर, उसे भविष्य की पत्नी तथा माता की भूमिका के लिए तैयार किया जाता है। माता तथा परिवार की अन्य वयस्क महिलायें कन्या को प्रारम्भ से ही भोजन पकाना, गृह-व्यवस्था करना, बालकों की देखभाल करना, वस्त्रों की देखभाल करना, आतिथ्य सत्कार करना, सामाजिक सम्बन्ध बनाए रखना तथा परिवार के समस्त सदस्यों की हर सम्भव देखभाल करना सिखाती हैं। इन समस्त कार्यों के प्रशिक्षण की व्यवस्था परिवार में ही की जाती थी। इनके लिए कोई विशिष्ट पाठशालाएँ नहीं थीं।
आधुनिक परिवार के ढाँचे में परिवर्तन आने परिवार के स्वरूप बदल जाने तथा भारतीय परिवार में महिलाओं के जीवन मूल्य में तेजी से अन्तर आने के कारण आज यह आवश्यक हो गया है कि गृह-कला की शिक्षा, शालाओं में पाठ्यक्रम के माध्यम से दी जाए। गृह निर्माण कला को वैज्ञानिक तथा क्रमबद्ध तरीके से शालाओं में पढ़ाया जाए।
गृह-शिल्प अथवा गृह-कला के अध्ययन का सम्बन्ध दैनिक जीवन से जाए। सम्बन्धित अनेक क्रियाओं से है;
जैसे—भोजन, वस्त्र, आवास, अर्थ-व्यवस्था, स्वास्थ्य, बालक का पालन-पोषण, आन्तरिक सज्जा, सामुदायिक सेवा आदि। धर्म, कला, संस्कृति आदि उसके अन्तरंग भाग हैं। जीवन से सम्बन्धित इन विविध पहलुओं को समझने के लिए विविध प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता है। अतः गृह-विज्ञान शिक्षा में प्रारम्भिक वैज्ञानिक ज्ञान;
जैसे—भौतिकी, रसायन, शरीर क्रिया, जीव-विज्ञान आदि सामाजिक विज्ञान तथा कला सम्बन्धी ज्ञान; जैसे- अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, कला आदि का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है। इसी शिक्षा के
आधार पर घर तथा पारिवारिक जीवन में सम्पन्नता प्राप्त हो सकती है। इस ज्ञान के द्वारा गृहिणी अपने सीमित साधनों के उपयोग द्वारा परिवार को अधिकतम संतोष तथा सुख प्रदान कर सकती है।
गृह शिल्प विषय की आवश्यकता
गृह-शिल्प के अन्तर्गत प्रमुख रूप से निम्नलिखित तत्व सम्मिलित हैं जो हमारी प्रतिदिन की आवश्यकता से सम्बन्धित हैं-
1. पोषण एवं आहार विज्ञान—इसके अन्तर्गत हमें सन्तुलित भोजन की मानव शरीर में क्या आवश्यकता है, उसका ज्ञान होता है। सन्तुलित भोजन से शरीर स्वस्थ रहता है और शरीर को आवश्यक पौष्टिक तत्वों की प्राप्ति होती है। सन्तुलित भोजन प्राप्त न होने का मुख्य कारण अज्ञानता है। इस विषय के अन्तर्गत भोजन के बारे अन्य जानकारी भी प्राप्त होती है।
2. गृह व्यवस्था एवं गृह सज्जा-गृह-व्यवस्था एवं गृह सज्जा के अन्तर्गत घर का चुनाव, घर की सफाई व सुरक्षा, घर की सज्जा, घर की आय और व्यय का सन्तुलन आदि का ज्ञान प्राप्त होता है।
3. वस्त्र-विज्ञान, सिलाई एवं कढ़ाई वस्त्र हमारे जीवन की आवश्यक है आवश्यकता में से एक है इस प्रकार वस्त्र विज्ञान का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। आकर्षक वस्त्रों से मनुष्य के व्यक्तित्व एवं सुन्दरता में वृद्धि होती है। वस्त्र विज्ञान का ज्ञान एक गृहिणी के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
4. गृह-परिचर्या तथा प्राथमिक चिकित्सा-इसके अन्तर्गत शरीर के विभिन्न अंगों की जानकारी प्राप्त होती है एवं उनके अंगों की कार्य विधि एवं चोट तथा दुर्घटना के समय प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होता है।
5. शरीर विज्ञान एवं स्वास्थ्य रक्षा—इसके अन्तर्गत हम अपने शरीर के आन्तरिक एवं बाह्य अंगों के कार्य, उनकी सुरक्षा इत्यादि किस प्रकार की जाए, इसका ज्ञान होता है ।
6. मातृकला एवं शिशु कल्याण-इसके अन्तर्गत बालिका को अपने स्त्रीयोचित लक्षणों की जानकारी प्राप्त होती है क्योंकि आज भी भारत में यौन शिक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं है अतएव आज की बालिका को इस शिक्षा के द्वारा माता एवं शिशु दोनों का पालन-पोषण किस प्रकार होना चाहिए, इसकी जानकारी प्राप्त होती है।
7. शिक्षा का प्रसार-शिक्षा के प्रसार का शाब्दिक अर्थ शिक्षा के विस्तार या फैलाव से है जिसके द्वारा जनसामान्य को शिक्षित कर पाना सम्भव हो पाता है। इसका प्रमुख कार्य ग्रामीण अंचलों में निवास करने वाले व्यक्तियों में ज्ञान का विकास करना है जिसके द्वारा वह अपनी-अपनी समस्याओं का सरलता से समाधान कर सकें।
इस प्रकार गृह-विज्ञान के द्वारा बालिकाएँ उपर्युक्त विषयों का अध्ययन करती हैं अत: हम कह सकते हैं कि इन विषयों के अध्ययन से बालिकाएँ अपने जीवन की शिक्षा प्राप्त करती हैं।
8. अन्य तत्व-गृह-शिल्प के गठन में उपर्युक्त तत्वों के अतिरिक्त कुछ अन्य तत्व भी सम्मिलित होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं-
(1) गृह के सम्पूर्ण वातावरण का ज्ञान तथा उसी के अनुकूल उसकी व्यवस्था।
(2) व्यक्तिगत सुविधाओं का ध्यान रखना।
स्पष्ट है कि घर का सम्बन्ध घर के विभिन्न कार्यों से है घर के किए जाने वाले विभिन्न कार्यों में प्रयोग किए जाने वाले उपकरणों व उनके रख-रखाव आदि के लिए गृह-शिल्प में अन्य सहयोगी विषयों का ज्ञान भी आवश्यक हो जाता है।