Rahulwebtech.COM-Online Share Marketing, Internet Tips aur Tricks in Hindii मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासन काल में कौन-कौन सी योजनाएँ लागू की

मुहम्मद बिन तुगलक ने अपने शासन काल में कौन-कौन सी योजनाएँ लागू की

 मुहम्मद बिन तुगलक (सन् 1325 ई. से सन् 1351 ई. तक)

गयासुद्दीन तुलगक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक सन् 1325 ई. में दिल्ली का सुल्तान बना । उसने 26 वर्ष शासन किया । मुहम्मद बिन तुगलक ने साम्राज्य की प्रगति और सुव्यवस्था के लिए निम्नलिखित नयी योजनाएँ लागू कीं—-

(1) दोआब में कर वृद्धि — तुगलक ने गंगा एवं यमुना के बीच की भूमि जिसे दोआब कहते थे, वहाँ ' भूमि कर' में वृद्धि कर दी और कई अन्य कर भी लगा दिये । 

(2) राजधानी में परिवर्तन- सुल्तान की दूसरी योजना राजधानी में परिवर्तन क नये स्थान पर दूसरी राजधानी बनाने की थी । देवगिरी शहर उसके साम्राज्य के बीच स्थित था। युद्ध के हिसाब से भी उसकी स्थिति अच्छी थी, अतः उसने अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरी बनाने का आदेश दिया । देवगिरी का नाम बदलकर दौलताबाद रखा गया।

(3) ताँबे की मुद्रा का चलन - सुल्तान के शासन के समय चाँदी का उत्पादन काफी कम हो गया था । उस समय चाँदी के सिक्कों का चलन था । तुगलक ने चाँदी के सिक्कों के स्थान पर मिश्रित धातु के सिक्के चलाने का आदेश दिया । अतः उसका विचार चाँदी को भारत में रोककर व्यापार का सन्तुलन भारत के पक्ष में करना था ।

सुल्तान ने साम्राज्य की प्रगति और सुव्यवस्था के लिए कई नई योजनाएँ चलाय मगर सुल्तान के द्वारा चलायी गयी ये योजनाएँ प्रायः असफल रहीं क्योंकि उसने उनको सही तरीके से लागू नहीं किया ।

मुहम्मद बिन तुगलक के शासन के अन्तिम काल में राज्य में अशान्ति फैल गयी। उत्तर और दक्षिण दोनों भागों में विद्रोह शुरू हो गये । केन्द्रीय शासन प्रणाली होने के कारण सुल्तान स्वयं दोनों स्थानों पर नियन्त्रण न रख सका। सन् 1347 ई. में दक्षिण में दो राज्यों बहमनी राज्य और विजयनगर राज्य का उदय हुआ। पूरब में बंगाल स्वतन्त्र हो गया । सुल्तान शासन के अन्तिम सोलह वर्षों तक विद्रोहों को शान्त करने में लगा रहा । सिन्धु विद्रोह के समय तुगलक बीमार पड़ा और 20 मार्च, 1351 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

फिरोजशाह तुगलक (सन् 1351 ई. से सन् 1388 ई. तक) 

मुहम्मद तुलगक की मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोजशाह तुगलक दिल्ली की गद्दी पर बैठा था। उसने 37 वर्षों तक दिल्ली पर शासन किया । गद्दी पर बैठते ही फिरोज तुग़लक के सामने पहली समस्या विद्रोहों को शान्त करने और विघटन को रोकने की थी । इसके लिए उसने अमीरों, सेना तथा उलेमाओं को सन्तुष्ट करने का प्रयास किया । इस्लाम के नियमों के अनुसार राज्य प्रशासन चलाया। उसने साम्राज्य वृद्धि के लिए कोई आक्रमण नहीं किया बल्कि साम्राज्य की रक्षा के लिए आक्रमण किये । फिरोज तुगलक ने प्रजा के हित के लिए निम्न कार्य किये—-

(1) कृषि की सिंचाई हेतु फिरोज तुगलक ने यमुना नहर, सतलज नहर आदि का निर्माण कराया ।

(2) बंजर भूमि से प्राप्त आमदनी को धार्मिक एवं शैक्षिक कार्यों में खर्च किया । 

(3) प्रजा के लिए सरायों, जलाशयों, अस्पतालों, बगीचों और पुलों का निर्माण एवं मरम्मत करवायी ।

(6) बेरोजगारों को नौकरी देने हेतु रोजगार कार्यालय स्थापित किया, आदि ।

(4) दीवाने-खैरात विभाग की स्थापना की जिससे विधवाओं, अनाथों एवं लड़कियों के विवाह के लिए आर्थिक सहायता दी जाती थी । 

(5) सरकारी खर्च पर योग्य वैद्यों द्वारा औषधियों एवं भोजन दिये जाने की व्यवस्था की थी।

तैमूरलंग का आक्रमण

फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद इस वंश के अनेक शासकों ने शासन किया किन्तु वे निर्बल और शक्तिहीन थे, अत: तुगलक वंश का तैमूर के आगमन से अन्त हो गया ।

तैमूर एक तुर्क सरदार था जिसे तैमूर लंग भी कहा जाता था । यह मध्य एशिया के समरकन्द का निवासी था । वह मध्य एशिया के कुछ भागों के विशाल क्षेत्र पर शासन करता था और उसका साम्राज्य ईरान तक फैला था । तैमूर ने सन् 1398 में अपनी विशाल सेना लेकर भारत पर आक्रमण किया । उसके आक्रमण का उद्देश्य केवल उत्तर भारत पर आक्रमण कर धन लूट कर मध्य एशिया लौट जाना था । तैमूर ने दिल्ली में प्रवेश कर पर्याप्त मात्रा में धन लूटा और नगरवासियों की हत्याएँ कीं । यह घटना किसी नगर के लिए एक भयानक घटना थी ।

तैमर ने भारत के लूटे हुए धन को शानदार इमारतों, राजमहल और मस्जिद बनवाकर समरकंद को सजाने में व्यय किया । तैमूर को उसकी मृत्यु के बाद समरकन्द की एक इमारत में दफना दिया गया तुलगक वंश का अन्तिम सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद था उसकी मृत्यु सन् 1413 में हुई। 

सैय्यद वंश (सन् 1414 ई. से सन् 1451 ई.)

तुगलक वंश के पतन के बाद खिज्रखाँ ने 1414 ई. में सैय्यद वंश की किन्तु इस वंश का शासन काल बहुत थोड़े समय के लिए रहा। इस वंश में खिरजखा के बाद मुबारक शाह, मुहम्मद शाह तथा आलमशाह दिल्ली के सुल्तान बने। 

लोदी वंश (सन् 1451 ई. से सन् 1526 ई.)

सन् 1451 ई. में दिल्ली के अमीरों ने पंजाब के अफगान शासक बहलोल स आमन्त्रित करके दिल्ली के सिंहासन पर बैठाया। लोदी सुल्तान अफगान के थे कबीलों में रहते थे तथा अपना नेता स्वयं चुनते थे। वे अफगान सरदारों की राजम अधिक निर्भर थे। बहलोल लोदी ने 38 वर्षों तक शासन किया तथा सन् 1489 ई. म मृत्यु हो गयी ।

बहलोल लोदी की मृत्यु के पश्चात् उसका ज्येष्ठ पुत्र 1489 ई. में सुल्तान गया । उसने सिकन्दर लोदी के नाम से शासन किया। सिकन्दर लोदी ने पश्चिमी दोन तक गंगा की घाटी पर अपना अधिकार कर लिया । उसने 1504 ई. में अपनी राज दिल्ली से हटाकर नये नगर में स्थापित की जो बाद में आगरा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सिकन्दर लोदी ने अपनी राजधानी आगरा से जनता की भलाई के अनेक कार्य किये । उसने प्रजा को राजभक्त और राज्य को शक्तिशाली बनाने तथा वस्तुओं का मूल घटाकर और उन पर नियन्त्रण करके राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारने का प्रयास किया।

सिकन्दर लोदी ने एक प्रामाणिक गज (नाप का पैमाना) चलाया जो 30 इंच का होता था । इसे सिकन्दरी गज के नाम से जाना जाता है । सन् 1517 ई. में सिकन्दर लोदी की मृत्यु हो गयी ।

सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इब्राहिम लोदी दिल्ली का सुल्तान बना । इब्राहिम लोदी का अपने सरदारों के प्रति समानता का व्यवहार नहीं था, अतः अमीर सरदार उससे असन्तुष्ट रहने लगे। उसका मेवाड़ के राणासांगा तथा ग्वालियर के राजा मानसिंह के साथ युद्ध हुआ । उसका ग्वालियर पर अधिकार हो गया । प्रमुख अफगान सरदारों ने इब्राहिम लोदी का विरोध किया और काबुल के शासक बाबर के पास भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा । सन् 1526 ई. में पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी तथा बाबर का मुकाबला हुआ । युद्ध में इब्राहिम लोदी की पराजय हुई । इब्राहिम युद्ध में मारा गया । बाबर ने लोदी वंश का अंत करके भारत में मुगलवंश की स्थापना की ।

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