Rahulwebtech.COM-Online Share Marketing, Internet Tips aur Tricks in Hindii वायुमण्डल से आप क्या समझते हैं ? वायुमण्डल की संरचना का वर्णन

वायुमण्डल से आप क्या समझते हैं ? वायुमण्डल की संरचना का वर्णन

तापक्रम में परिवर्तन की दर के आधार पर वायु मण्डल को पाँच परतों में विभाजित किया जाता है-

1. क्षोभ मण्डल—इसकी ऊँचाई ध्रुवों पर 8 किलोमीटर तथा विषवत् वृत्त पर 18 किलोमीटर तक है। इस परत पर जलवाष्प तथा धूल के कण पाये जाते हैं। इसमें मौसम सम्बन्धी सभी घटनाएँ; जैसे—बादल, वर्षा, तूफान आदि घटित होती हैं। इसी परत मेंसभी प्रकार का जीवन पाया जाता है। इसमें ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटा जाता है। इस मण्डल को परिवर्तन मण्डल के नाम से भी पुकारते हैं।

 2. समताप मण्डल - यह वायु मण्डल को दूसरी परत है । इसकी ऊँचाई 50 किलोमीटर है। इसमें 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक तापमान समान रहता है फिर क्रमशः बढ़ने लगता है।

3. मध्य मण्डल - इस मण्डल की समुद्र तल से ऊँचाई 50 से 80 किलोमीटर तक है। इस मण्डल में जल वाष्प, बादल तथा धूल आदि के कणों की कमी से तापक्रम कम रहता है और वायु काफी तेज चलती है।

4. ऊष्मा मण्डल - इस मण्डल का फैलाव समुद्र तल से 80 किलोमीटर को ऊचाई से शुरू होता है । इस मण्डल में वायु का घनत्व कम होता है, अतः इस मण्डल में ऊँचाई के साथ-साथ तापक्रम में वृद्धि होती जाती है । इस मण्डल में दो अन्य परतें ओजोन परत तथा आयन परत भी पायी जाती हैं।

आयन परत को आयन मण्डल भी कहते हैं।

ओजोन गैस की परत पृथ्वी से लगभग 30 किलोमीटर से 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक होती है। इस क्षेत्र में ओजोन गैस की प्रधानता होती है। ओजोन गैस की यह परत सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को सोख लेती है । आपन परत पृथ्वी से 80 से 400 किलोमीटर की ऊँचाई तक है। इस परत में विद्युत कण उपस्थित रहते हैं जो पृथ्वी से प्रक्षेपित विद्युत तरंगों को रोककर पुनः पृथ्वी पर लौटा देते हैं। ये तरंगें विभिन्न प्रकार के रेडियो और ट्रांजिस्टर द्वारा प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों को सुनने में हमारी सहायता करती हैं । ध्रुवों पर ध्रुवीय प्रकाश भी हमको इस परत के उपस्थित रहने के कारण दिखायी देता है।

5. बाह्य मण्डल- बाह्य मण्डल वायु मण्डल की बाहरी परत है। इसको सीमा अनिश्चित है। इस परत में वायु का घनत्व सबसे कम होता है। वायु का घ कम होने के कारण वायु विरल हो जाती है।

वायुमण्डल का महत्व

 पृथ्वी पर जीवन के लिए वायु मण्डल आवश्यक है । जीवन का अस्तित्व बनाये रखने के लिए वायुमण्डल का निम्नलिखित महत्व है-

(1) यह सूर्य से आने वाली घातक एवं हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकता है तथा इन किरणों से जीवधारियों को बचाने में सहायता करता है। 

(2) पृथ्वी पर जीवन हेतु अनुकूल तापमान बनाये रखता है जिससे धरातल का

तापक्रम न तो अधिक गर्म और न अधिक ठण्डा रखता है।

(3) वायुमण्डल द्वारा पृथ्वी पर ध्वनि तरंगें एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती हैं ।

(4) वायुयान की उड़ानें भी वायुमण्डल के कारण ही सम्भव हो सकी हैं।

(5) जीवन के लिए उपयोगी गैंसे भी हमको वायु मण्डल द्वारा ही प्राप्त होती हैं ।

वायुमण्डल का संगठन

वायु मण्डल का संगठन-हमारे चारों ओर फैली हुईं अनेक गैसों का मिश्रण है। इस मिश्रण में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन, 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड तथा 0.97 प्रतिशत अन्य गैसें जिनमें हाइड्रोजन, आर्गन, - 2015 1 इसके साथ इसमें कुछ मात्रा जल हीलियम, ओजोन आदि गैसें पायी जाती के वाष्प, धूल कण, धुआँ आदि विद्यमान रहते हैं। ऑक्सीजन जीवनदायिनी गैस है। वायु मण्डल में नाइट्रोजन अधिक मात्रा में होते हुए भी अप्रत्यक्ष रूप ण से वनस्पति के विकास में सहायक है।

इड्रोजन तथा ऑक्सीजन के मिलने से पानी बनता है। कार्बन डाइऑक्साइड और जल दोनों ही पेड़-पौधों के विकास में सहायक हैं। वायु मण्डल में कार्बन डाइ- ऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है क्योंकि यह गैस सूर्य की ऊष्मा को अन्तरिक्ष में वापस जाने से रोकती है। इसे 'गीन हाउस प्रभाव' कहते हैं। वायु मण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती हुई मात्रा को पेड़-पौधों द्वारा सन्तुलित किया जाता है। ओजोन गैस सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है।

वायुमण्डल की आर्द्रता 

आर्द्रता का माप-वायुमण्डल के किसी विशेष अंश में विशेष प्रकार या नमी उपस्थित है इसे दो प्रकार से मापा जा सकता है क्योंकि किसी वायु के अंश में सामान्यत: उसकी क्षमता से कम ही आर्द्रता पायी जाती है। इस प्रकार एक विशेष तापमान पर एक घन फुट वायु में जितना ग्रेन (1 ग्रेन = 180 मि.ग्रा. पानी का भार) वाष्प उपस्थित है। वह उसकी वास्तविक या निरपेक्ष आर्द्रता कहलायेगी! जबकि एक घन फुट वायु की एक - निश्चित तापमान पर जितनी अधिकतम वाष्प ग्रहण करने की क्षमता है एवं जो वाष्प उस समय उपस्थित है । उन दोनों के अनुपात के द्वारा भी आर्द्रता को प्रतिशत में मापा जा सकता है। इसे सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं पूर्व निश्चित तापमान पर जितनी जलवाष्प वायु ग्रहण कर सकती है ।

उदाहरण के तौर 30° फा. एवं 40° फा. के मध्य 10° फा. तापमान बढ़ने पर मात्र एक ग्रेन की अतिरिक्त क्षमता प्राप्त होती है। जबकि से 100° के मध्य 10° फा. तापमान बढ़ने पर उसी वायु की जलवाष्प ग्रहण करने की क्षमता 5 ग्रेन अर्थात् पाँच गुना अधिक हो जाती है।

निरपेक्ष या वास्तविक आर्द्रता (Absolute a Real Humidity)— निश्चित आयतन वाली वायु में किसी निश्चित तापमान पर जितनी नमी पायी जाती है, वही वास्तविक या निरपेक्ष आर्द्रता है। जैसे 80° फा. तापमान पर वायु के एक घन फुट हिस्से में 5 ग्रेन वाष्प है तो यही 5 ग्रेन प्रति इकाई उसकी वास्तविक या निरपेक्ष आर्द्रता कहलायेगी यदि यह आर्द्रता अतिरिक्त नमी प्राप्ति के कारण या अधिक तापवृद्धि के पश्चात् बढ़ जाती है जैसे 5 ग्रेन के स्थान पर 6 ग्रेन हो जाती है तो दूसरी या इस बदली हुई स्थिति में वायु की निरपेक्ष आर्द्रता 6 ग्रेन के प्रति घन फुट हो जायेगीं वायु में सामान्यतः आर्द्रता की मात्रा स्थिर नहीं रहती अतः किसी निश्चित समय का उल्लेख करते हुए उसे अंकित किया जाता है। अयुमण्डल कहते हैं।

सापेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity)—यह एक अनुपात या प्रतिशत में व्यक्त की गयी आर्द्रता है। ऐसा अनुपात में एक घन फुट या पूर्व निश्चित तापमान एवं आयतन की वायु में उपस्थित वास्तविक नमी एवं उस वायु की अधिकतम नमी ग्रहण करने की क्षमता के मध्य है। जैसे 90° फा. पर एक घन फुट वायु में 7.4 ग्रेन जलवाष्प मौजूद है जबकि उसी तापमान पर उस वायु की क्षमता 14.8 ग्रेन है। 

इस प्रकार स्पष्ट है कि कि तापमान बदलते ही उसी निरपेक्ष आर्द्रता की सापेक्षिक आर्द्रता निरन्तर बदलती रहती है। दूसरे अर्थों में तापमान बढ़ने पर उसी वायु की जल ग्रहण क्षमता बढ़ जाने से सापेक्षिक आर्द्रता का प्रतिशत घटता जाता है एवं तापमान घटने पर इसकी विपरीत स्थिति होने से सापेक्षिक आर्द्रता बढ़ता जाता है।

सापेक्षिक आर्द्रता का महत्व-बदलते हुए मौसम का अनुमान लगानें में तापमान परिवर्तन के साथ-साथ सापेक्षिक आर्द्रता के बदलते स्वरूप का ज्ञान विशेष सहायक रहता है। इससे वाष्पोकरण की वायु क्षमता का भी ज्ञान होता है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मानव की कार्यक्षमता या सहनशीलता वायु में मौजूद नमी के प्रतिशत से निकट से प्रभावित रहती है। उष्ण एवं अर्द्धष्ण प्रदेशों में दो-तिहाई से अधिक नमी व्यक्ति की कार्यक्षमता पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है। इस भाँति शीतोष्ण प्रदेशों में भी विशेष ऊँची सापेक्षिक आर्द्रता उसके लम्बे समय तक कार्य करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।


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