Rahulwebtech.COM-Online Share Marketing, Internet Tips aur Tricks in Hindii राष्ट्रीय शिक्षा की नवीनतम नीति, 1992 की रूपरेखा in Hindi

राष्ट्रीय शिक्षा की नवीनतम नीति, 1992 की रूपरेखा in Hindi

राष्ट्रीय शिक्षा की नवीनतम नीति, 1992 की रूपरेखा (An Outline of Recent Policy of National Education, 1992) 

(1) भूमिका- इस भाग में राष्ट्रीय शिक्षा का पुनर्निर्माण किया गया एवं नवीन शिक्षा योति की आवश्यकताओं की विवेचना की गयी ।

(2) शिक्षा का सार एवं भूमिका - इस भाग में शिक्षा को व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए आवश्यक माना गया है। शिक्षा को जनशक्ति एवं आर्थिक विकास का प्रमुख साधन बताया गया है।

(3) राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था-राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था देश के संविधान के प्राविधानों तथा सिद्धान्तों के आधार पर होनी चाहिए। यह जाति पाँति के भेदभाव से दूर होनी चाहिए। सम्पूर्ण भारत में शैक्षिक संरचना एकसमान होनी चाहिए। यह शैक्षिक संरचना 10 + 2 + 3 के आधार पर होनी चाहिए और इसे सभी राज्य अपने-अपने यहाँ लागू कर दें। शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली 'राष्ट्रीय पाठ्यक्रम संरचना' पर आधारित होनी चाहिए।

राष्ट्रीय शिक्षा की नवीनतम नीति, 1992 की रूपरेखा in Hindi

(4) समता के लिए शिक्षा- नवीन शिक्षा नीति में शैक्षिक अवसरों की असमानता को दूर करने के उद्देश्य से शिक्षा द्वारा समानता लाने पर विशेष बल दिया गया है। इसमें अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को भी सामान्य जातियों के समान लाने का प्रयासों पर विशेष बल दिया गया है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रौढ़ एवं सतत् शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार के लिए विभिन्न स्रोतों एवं तरीकों को व्यवहार में लाने पर बल दिया है।

(5) तकनीकी एवं प्रबन्ध शिक्षा- नवीन शिक्षा नीति में स्कूल स्तर से ही बड़े पैमाने पर संगणक कार्यक्रमों के आयोजनों का उल्लेख किया गया है। तकनीकी शिक्षा में शिक्षकों को बहुमुखी भूमिका निभानी होगी।

(6) विभिन्न अवस्थाओं पर शिक्षा का पुनर्गठन - नवीन शिक्षा नीति में शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर पुनर्गठन पर विशेष बल दिया गया है। प्राथमिक शिक्षा के दो विषय होंगे—

(i) 14 वर्ष तक की अवस्था के बालकों का नामांकन एवं ठहराव, 

(ii) शिक्षा के स्तरों में गुणात्मक सुधार । माध्यमिक शिक्षा स्तर पर योग्य एवं प्रतिभाशाली छात्रों को तीव्र गति से प्रगति की सुविधाएँ उपलब्ध करायी जायेंगी। इसके लिए गति निर्धारक स्कूलों की स्थापना की जायेगी । इस स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा को विशेष बल मिलेगा । सन् 1990 तक 10 प्रतिशत और 1995 तक 25 प्रतिशत उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में व्यावसायिक शिक्षा प्रदान की जायेगी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस समय भारत में T लगभग 261 विश्वविद्यालय तथा 10,000 से अधिक महाविद्यालय हैं । भविष्य में इन्हें व्यापक एवं मजबूत रूप प्रदान किया जायेगा। इसके अलावा देश में खुले विश्वविद्यालया ग्रामीण विश्वविद्यालय, डिग्री का नौकरी से सम्बन्ध विच्छेद, राष्ट्रीय परीक्षा सेवा आदि पर ध्यान दिया जायेगा । सथ-साथ भौतिकता दिशा प्रदान करने में हुँचा जा सकता है।

(7) व्यवस्था को गतिमान बनाना – समस्त शिक्षक पढ़ायें एवं समस्त छात्र पढ़ें इसके लिए सरकार शिक्षकों को बेहतर सुविधाएँ प्रदान करेगी। इसके अतिरिक्त शिक्षण पद्धति को और अधिक प्रतिभाशाली बनाने के लिए शिक्षकों के उत्तरदायित्व बढ़ाये जायेंगे। संस्थाओं को भी पहले से अधिक तथा बेहतर सुविधाएँ जुटायी जायेंगी ।

(8) शिक्षा की विषय-वस्तु एवं प्रक्रिया को एक नया मोड़-शिक्षा की विषय-वस्तु एवं प्रक्रिया को सांस्कृतिक पाठ्यक्रम से समृद्ध किया जायेगा । इसके लिए उनमें मूल्यों की शिक्षा, ग्रन्थों एवं ग्रन्थालयों, शिक्षा का माध्यम, कार्य अनुभव, शारीरिक शिक्षा, पर्यावरणीय शिक्षा, मूल्यांकन प्रक्रिया एवं परीक्षा सुधार से सम्बन्धित नीतियों की स्पष्ट झलक देखने को मिलेगी।

(9) शिक्षक-शिक्षक ही समाज के सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप को प्रदर्शित करता है । अतः उसकी नियुक्ति, वेतन, सेवा शर्तों, उन्नति की सुविधाओं आदि से सम्बन्धित नीतियाँ निर्धारित की गयी हैं। शिक्षक प्रशिक्षण को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए सेवाकालीन शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है।

(10) शिक्षा का प्रबन्ध-शिक्षा के प्रबन्ध के विषय में राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय शिक्षा सलाहकर परिषद प्रमुख भूमिका प्रस्तुत करेगी। अखिल भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना की जायेगी । राज्यों में राज्य शिक्षा सलाहकार परिषदों का गठन होगा। जिला स्तर पर जिला परिषदें उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की देखभाल करेंगी।

(11) संसाधन और समीक्षा- लोकतन्त्रात्मक समाजवादी समाज की स्थापना एवं व्यावहारिक एवं विकासोन्मुख उद्देश्यों की शिक्षा में निवेश लगाकर ही प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों को जुटाना होगा तथा प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात् नवीन शिक्षा नीति की समीक्षा की जायेगी ।

(12) भविष्य - शिक्षा का भावी स्वरूप जटिल होने के फलस्वरूप इसका पाना सम्भव नहीं है, फिर भी यह आशा की गयी है कि हम इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता अर्जित करेंगे।


Post a Comment

Previous Post Next Post