Rahulwebtech.COM-Online Share Marketing, Internet Tips aur Tricks in Hindii ह्वेनसांग का भारत वृत्तान्त- Hiuensang Ka Bharat Vrittant in Hindi

ह्वेनसांग का भारत वृत्तान्त- Hiuensang Ka Bharat Vrittant in Hindi

चीनी यात्री ह्वेनसांग का भारत आगमन हर्ष के शासनकाल की एक प्रमुख घटना सर्वविदित है कि तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक तथा बौद्ध धर्म की स्थिति के सम्बन्ध में ह्वेनसांग की कृति (सी-यू-की) से जितना पता चलता है, उसके अभाव में हमारा प्राचीन भारत का ज्ञान अधूरा है। बी. ए. स्मिथ ह्वेनसांग के वर्णन के महत्व के विषय पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, "उसका ग्रन्थ सच्चे समाचारों का अमूल्य कोष में महत्वपूर्ण किया है जो भूतल विशारदों की पुरातत्व सम्बन्धी किसी भी खोज ने नहीं किया।

ह्वेनसांग का भारत वृत्तान्त- Hiuensang Ka Bharat Vrittant in Hindi

 जिसका अध्ययन प्राचीन अवशेषों की खोज करने वाले विद्यार्थी के लिए अति आवश्यक है। इस ग्रन्थ ने भारत के लुप्त हुए इतिहास को प्रकाश में लाने का वह कार्य यद्यपि ह्वेनसांग के ग्रन्थ का प्रधान ऐतिहासिक मूल्य इस बात में है कि उसने राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक संस्थाओं का वर्णन किया, किन्तु बहुत-सी प्राचीन ह बौद्ध धर्म जनश्रुतियों का उल्लेख करके उसने हमारी कृतज्ञता के ऋण को और भी बढ़ा दिया है। यद्यपि उसने सावधानी के साथ उनकी रक्षा न की होती तो ये जनश्रुतियाँ लुप्त हो गयी महान् का लेखक और सामाजिक होतीं।"

 राजनीतिक दशा - चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्ष के शासन से बहुत अधिक प्रभावित हुआ था। उसके अनुसार हर्ष का शासन उदार सिद्धान्तों पर आधारित था तथा शासन-तन्त्र जनहित की कामना से संचालित होता था। राजा के परिश्रम तथा दान भी ह्वेनसांग ने बहुत प्रशंसा की है। राजा के समय का विभाजन अत्यन्त किया गया था। उसका सारा समय धार्मिक कार्यों तथा शासन के अनुसार "राजा का दिन तीन भागों में विभक्त था— दिन का एक भाग तो शासन के मामलों में व्यतीत होता था और शेष दो भाग धार्मिक कृत्यों में व्यतीत होते थे। वे काम से कभी थकने वाले न थे, उनके लिए दिन का समय बहुत कम था। अच्छे कार्यों में वे इतने संलग्न रहते थे कि वे सोना और खाना भी भूल जाते थे।"

ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष के काल में प्रजा सुखी एवं सम्पन्न थी तथा उनसे बेगार नहीं ली जाती थी। कर भी जनता पर अधिक नहीं थे। भू-कर भी उपज का 1/6 भाग होता था। हर्ष राजकीय आय का सदुपयोग करने के उद्देश्य से उसे चार भागों में विभक्त करता था। पहला भाग राजकीय कार्यों के लिया, दूसरा सरकारी कर्मचारियों लिए, तीसरा विद्वानों की सहायता व चौथा दान के लिए रहता था।

न्याय व्यवस्था भी अत्यन्त सक्षम थी तथा अपराधियों को कठोर दण्ड दिए थे। ह्वेनसांग ने लिखा है कि वैसे अपराध बहुत कम होते थे। राज्य के जनहित के का पर विशेष ध्यान दिया जाता था तथा इसी में हर्ष ने अनेक धर्मशालाएँ आदि बनवाय थीं।

ह्वेनसांग के अनुसार राजधानी कन्नौज एक भव्य नगर था तथा उसका सम्मान हो प्रश्न के शासनकाल में चरम उत्कर्ष पर पहुँच गया था। ह्वेनसांग ने हर्ष की शक्तिशाली सेन का भी उल्लेख किया है। उसके अनुसार हर्ष की सेना में 60,000 हाथी व 1,00,000 घुड़सवार थे।

आर्थिक स्थिति-ह्वेनसांग के वृत्तान्त से हर्षकालीन आर्थिक स्थिति पर प्रकाश पड़ता है। हर्षकालीन आर्थिक स्थिति में कृषि के द्वारा ही जनता अपनी रोजी-रोटी अर्जित करती थी। सारे देश में सर्वत्र खेती होती थी और अन्न, फल, फूल अधिक मात्रा में पैदा होते थे। सिंचाई की उचित व्यवस्था करके कृषि की उन्नति की जाती थी।

यद्यपि कृषि की प्रधानता हर्षकाल में थी, परन्तु व्यवसाय व व्यापार की भी कमी किय न थी। भारत से विदेशों को चन्दन की लकड़ी, जड़ी-बूटियाँ, गर्म-मसाले, कपड़े तथा अन्य वस्तुएँ निर्यात होती थीं तथा भारत को घोड़े, धूप, हीरा व हाथी-दाँत आदि पुस्त आयात किया जाता था। ह्वेनसांग के अनुसार भारत में ऊनी, सूती, रेशमी व मलमल कपड़ा बहुत अच्छा तैयार किया जाता था। हर्षकाल में चाँदी के सिक्कों का प्रचलन था तथा सोने के सिक्कों का प्रचलन प्रायः बंद हो गया था ।

धार्मिक स्थिति — ह्वेनसांग ने लिखा है कि यद्यपि हर्ष तो बौद्ध धर्म का अनुयायी था, किन्तु उस समयों अनेक धर्म भारत में प्रचलित थे। ह्वेनसांग के अनुसार, "कुछ लोग तो मोर पुच्छ धारण करते हैं, कुछ मुण्डमाल द्वारा अपने को अलंकृत करते हैं, कुछ बिल्कुल नग्न रहते थे, कुछ अपने शरीर को घास तथा तख्तों से ढँकने हैं, कुछ अपने बालों को उखाड़ते हैं और मूछों को कटवाते हैं कुछ सिर के पाश्व के बालों में जटा बना लेते हैं और सिर पर घुमावदार चोटी रखते हैं।" जीवनी में भी विभिन्न सम्प्रदायों का उल्लेख इस प्रकार किया गया है, “भूत, निर्गन्ध, कापालिक तथा चूर्डिक सभी विभिन्न रूपों में रहते हैं। सांख्य व वैशेषिक के अनुयायियों में परस्पर विरोध है।"

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