जनार्दन रेड्डी समिति की प्रमुख सिफारिशों पर दृष्टिपात in Hindi

सन् 1992 में सरकार द्वारा गठित जनार्दन रेड्डी समिति ने अपने प्रतिवेदन में निम्नलिखित संस्तुतियाँ कीं-

(1) प्रत्येक राज्य एक केन्द्रीय अभिकरण की पहचान, जिसका मूल कार्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के शिक्षा कार्यों को बढ़ाने एवं नवीन दिशा देने की ओर अग्रसर करना हो । यह अभिकरण केन्द्र सरकार को भी वस्तु-स्थिति से अवगत कराए तथा नये प्रबन्धन की शुरुआत करने के लिए विकल्प सुझाये । इस कार्य को मूर्त रूप देने के लिए केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद् एक समिति को गठित करे जिसमें क्षेत्रीय शिक्षाविद् सम्मिलित हों। किसी वर्ग विशेष के लिए कोई अलग पाठ्यक्रम नहीं होना चाहिए। 

जनार्दन रेड्डी समिति की प्रमुख सिफारिशों पर दृष्टिपात in Hindi

अल्पसंख्यकों द्वारा चलायी जा रही शिक्षा संस्थाओं की ओर सरकार को ध्यान देने की बड़ी आवश्यकता है। सरकार उन पर सतत् निगरानी त्येक राष्ट्र रखते हुए पर्यवेक्षण भी करे ।

(2) नवोदय विद्यालय योजना जारी रखी जाये एवं प्रत्येक जनपद में एक नव विद्यालय की स्थापना की जाये । विद्यालयों की प्रवेश परीक्षाओं में विश्वसनीयता वैधता निरन्तर बढ़ानी चाहिए। आवश्यकतानुसार इन परीक्षाओं के स्वरूप में परिवर्तन को भी अमल में लाना होगा । है।

(3) समस्त विद्यालयों की गुणवत्ता को प्रत्येक स्तर पर सुधारना चाहिए एवं विद्यालय स्तरों पर फैली विषमताओं को दूर करने की आवश्यकता है। सुविधा प्राप्त विद्यालय अपनो सुविधाओं एवं संसाधनों को अन्य संस्थाओं के साथ बाँटे एवं साझेदारी की भावना में विकास के दरवाजे खोलने के सतत् प्रयास करें। सामुदायिक विकास की और ध्यान देने की आवश्यकता है एवं सुविधाविहीन वर्गों की पहुँच को सरल बनाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह सही मायनों में सामाजिक जवाबदेही का स्वरूप होगा।

(4) आँगनबाड़ी कार्यक्रम को और अधिक मजबूत बनाया जाय। बच्चों की देखभाल एवं परिवार कल्याण, पोषण व स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उपाय खोजे जाएँ । अभिप्रेरणा को प्रमुख स्थान दिया जाये। आठवीं पंचवर्षीय योजना में पूर्व बाल्यकाल देखभाल एवं शिक्षा (ई. सी. सी. ई.) योजना को जारी रखे जाने की आवश्यकता है। व्यावसागित पाठ्यक्रम बाहर कि

(5) नव साक्षरों के लिए सतत् शिक्षा कार्यक्रम चलाये जाने की आवश्यकता है। साक्षरता अभियान को और अधिक गतिशील बनाये जाने की आवश्यकता है।

(6) केन्द्र एवं राज्य सरकारें प्रौढ़ शिक्षा एवं सार्वजनिक प्रारम्भिक शिक्षा पर अधिक ध्यान दें । प्रत्येक स्तर पर वित्तीय, प्रशासनिक एवं राजनैतिक सहयोग को सुनिश्चित किया जाये । औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के स्तरों को सुधारा जाये तथा अनौपचारिक शिक्षा के प्रबन्ध तन्त्र को अधिक मजबूत किया जाये। 'ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड' योजना को नासा जाये। 21वीं शताब्दी में प्रवेश से पूर्व 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने के संवैधानिक दायित्व का प करने की बड़ी आवश्यकता है । इसमें कोई हील न दी जाये। एक किमी. की दूरी में सर्व बब्बों के लिए एक प्राथमिक विद्यालय हो । स्कूल छोड़ने वाले एवं कार्य में संलग्न बच्च एवं स्कूल न जा सकने वाली लड़कियों के लिए अनौपचारिक शिक्षा की व्यवस्था होती चाहिए । प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों का अनुपात 14 से सुधार कर 1:2 किया जाये । स्कूल छोड़ने वालों की दर कक्षा 1 से 5 तथा 6 से 8 के लिए 45 व 60 प्रतिशत से घटाकर 20 व 40 प्रतिशत की जाये। ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना उच्च प्राथमिक स्तर पर सभी बच्चे न्यूनतम अधिगम स्तर को प्राप्त कर सकें और उच्च प्राथमिक स्तर पर उस संकल्पना को लागू किया जाये। प्राथमिक स्तर की शिक्षा के क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करने के लिए व उसके सतत् निरीक्षण के लिए स्थानीय स्तर पर समिति बनायी जाये।

(7) माध्यमिक शिक्षा परिषदों को पुनर्गठित किया जाये एवं उन्हें स्वायत्तशासी बनाया जाये । प्रधानाध्यापकों को प्रशासनिक, शैक्षिक एवं वित्तीय अधिकार दिये जायें और उन्हें प्रशिक्षण की सुविधा भी प्रदान की जाय। 'राष्ट्रीय खुला स्कूल' की भूमिका को प्रभावी बनाया जाये। जिन विद्यालयों में सम्भव हो, कक्षा IX से ही व्यावसायिक कोर्स प्रारम्भ किये जाये। 10 + 2 के स्तर पर व्यावसायिक धारा को मजबूत बनाने की आवश्यकता हैं। ये कोर्स चयनात्मक आधार पर प्रारम्भ किये जाएँ। प्रारम्भिक स्तर पर केवल 10% विद्यालयों में इन कोसों को चलाया जाये । कार्य अनुभव कार्यक्रम का सुनियोजित क्रियान्वयन किया जाये व इनसे सम्बन्धित क्रियाओं में 12.5 से 20% विद्यालय पर समय व्यय किया जाये। इन सभी कार्यक्रमों का स्वरूप प्रयोगात्मक हो ।

(8) उच्च शिक्षा के विकास के लिए राज्य स्तर पर उच्च शिक्षा परिषदों को स्थापित प्रचार-प्रसार में शिक्षकों व छात्रों को सम्मिलित किये जाने की कोशिश करनी चाहिए । 1 + 2 स्तर के पूरा करने वाले छात्रों के लिए विभिन्न आयाम, जैसे कि अर्द्ध-सैनिक सेवा, व्यावसायिक व प्रोफेशनल कौशलों का विकास एवं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार कार्य के लिए पाठ्यक्रम आदि विचारणीय हैं। इस कार्यक्रम से सम्बन्धित क्रियाकलाप गृह राज्य के बाहर किये जायेंगे। गाँधीजी के विचारों पर आधारित ग्रामीण शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्रीय ग्रामीण संस्थान परिषद् के गठन की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग में पूर्णकालिक सदस्यों की नियुक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है। यू. जी. सी. के क्षेत्रीय कार्यालय खोले जाने चाहिए। विश्वविद्यालयों में मॉडल पाठ्यचर्या अनुकूलित करने म्भिक शिक्षा पर अधिक की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए ।

(9) अखिल भारतीय प्राविधिक शिक्षा परिषद की क्षेत्रीय समितियाँ भी गठित की जाये तथा अनौपचारिक जानी चाहिए। ये समितियाँ नवीन संस्थान खोलने, नये पाठ्यक्रम प्रारम्भ करने, प्रवेश 'ब्लैकबोर्ड' योजना को क्षमता आदि को बढ़ाने के बारे में अपनी संस्तुतियाँ देंगी ।

(10) उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए । संस्कृत शिक्षा में शैक्षिक स्तर को समन्वित किया जाये । सिन्धी व अन्य अन्तर्राज्जयीय राष्ट्रीय स्तर पर सुनिश्चित किया जाए। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग एवं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान का विलय वांछनीय नहीं है । देश में भाषाई सर्वेक्षण की पुनः आवश्यकता नहीं है । केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान को स्वायत्तशासी निकाय बनाया जाए। त्रिभाषा सूत्र का एकसमान व तर्कपरक क्रियान्वयन किया जाए।

(11) दोनों केन्द्र एवं राज्य सरकारें परीक्षा के स्तर को सुधारने के लिए ठोस कार्यक्रम तथा योजनायें बनायें । माध्यमिक स्तर पर कम्प्यूटर शिक्षा की सुविधाओं को प्रदान किया जाय तथा प्रचार-प्रसार भी किया जाये । परीक्षा सुधार के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम व नेटवर्क तैयार करने की बहुत आवश्यकता है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली एवं स्तर पर एक विस्तृत प्रतिवेदन तैयार करके भिन्न-भिन्न स्तरों पर परीक्षा कार्यक्रमों में सुधार की योजना को क्रियान्वित करना होगा । प्रबन्धन एवं मूल्यांकन के लिए एक प्रभावी प्रक्रिया विकसित करना होगा । परीक्षा सुधारों एवं नवाचारों का प्रलेखन व प्रसरण भी महत्त्वपूर्ण कदम होगा। तमाम ऐसे स्कूलों को चिन्हित करना होगा जो अनेक पुस्तकों को करते हैं। उन्हें इस आदत से बचने की सलाह दी जाये ।

(12) जिला स्तर पर शिक्षा परिषदों की स्थापना की जाये। शैक्षिक संकुल के वि को चुने हुए क्षेत्रों में प्रायोगिक तौर पर चलाया जाये। राज्य स्तर पर विचार-विमर्श क यथाशीघ्र आई. ई. एस. के विचार को मूर्त रूप दिया जाये । राज्य स्तर पर शैक्षिक न्यायाधिकरणों का गठन होना ही चाहिए।

(13) शिक्षकों तथा प्रशिक्षणार्थियों के चयन की प्रणाली को वस्तुनिष्ठ एवं किसी प्रकार के प्रलोभन से मुक्त रखा जाये। अध्यापक शिक्षा में प्रथम उपाधि पत्राचार के कें पाठ्यक्रम प्रदान की जायें माध्यम सेन दी जाये। एन. सी. ई. आर. टी. को आवश्यक संसाधन व शक्तियां प्रदान की जाये ।

(14) संसाधनों के निर्धारण समय शिक्षा को अवशिष्ट क्षेत्र में रखने की प्रक्रिया को बदला जाये । प्रत्येक प्रकार की शिक्षा चाहे वह प्रारम्भिक शिक्षा का सार्वजनीकरण हो या प्रौढ़ साक्षरता हो, सभी की वित्तीय व्यवस्था सुनिश्चित की जाये । राजकीय संसाधनों के के आधार, मा आबंटन के लिए प्राथमिकताओं का निर्धारण करना आवश्यक है। उच्च शिक्षा एवं उत्थान को स्थ तकनीकी शिक्षा को शनैः-शनैः स्व-वित्तपोषित बनाया जाये । जरूरतमंद छात्रों के लिए ऋण मुहैया कराया जाये । सामुदायिक व सहकारी क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाये ।

उपरोक्त सिफारिशों तथा अनुमोदनों के आधार पर तथा आचार्य राममूर्ति समिति की संस्तुतियों के आधार पर सन् 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति को सन् 1992 में संशोधित पाठ्यक्रम म किया गया । इसी शिक्षा को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992 के नाम से जाना जाता है ।

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