उर्वरक कितने प्रकार के होते हैं ?उर्वरकों को कितने भागों बाँटा गया है ? in Hindi

 नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का पौधों पर प्रमुख प्रयोग का तरीका व समय बताइए।

उर्वरक उर्वरकों को चार भागों में बाँटा जा सकता है-

1. नाइट्रोजन युक्त उर्वरक (Nitrogenous Fertilizers ), 

2. फॉस्फेटिक उर्वरक (Phosphatic Fertilizers),

3. पोटेशियम उर्वरक (Potassic Fertilizers), 

4. यौगिक उर्वरक (Compound Fertilizers), 

नाइट्रोजन युक्त उर्वरक 

अमोनियम सल्फेट (NH4 ) 2 SO4 (Ammonium Sulphate)

अमोनियम सल्फेट सफेद चीनी के समान दानेदार उर्वरक है। उसमें 20.6% नत्रजन होती है। इसका प्रयोग अधिक नमी युक्त भूमियों में आसानी से किया जा सकता है। इसकी नत्रजन अमोनिया के रूप में होती है जो खेत में पानी के साथ बहकर नष्ट नहीं होती। यह पानी में घुलनशील है। अमोनियम सल्फेट का प्रभाव खेत में प्रयोग के 8-10 दिन बाद फसल पर दिखाई देने लगता है। धान और गन्ना के लिए यह अधिक उपयोगी है। इसक प्रयोग बुवाई के समय अथवा टॉप ड्रेसिंग से किसी भी समय किया जा सकता है। 

उर्वरक कितने प्रकार के होते हैं ?उर्वरकों को कितने भागों बाँटा गया है ? in Hindi

क्षारीय भूमियों के लिए अमोनियम सल्फेट अच्छा उर्वरक है। अमोनियम सल्फेट भूमि के साथ अम्लीय प्रतिक्रिया करता है। जब यह उर्वरक भूमि में डाला जाता है तो अमोनिया भाग को पौधे ग्रहण कर लेते हैं लेकिन सल्फेट भाग पानी में उपस्थित हाइड्रोजन के साथ प्रतिक्रिया करके गंधक के अम्ल में परिवर्तित हो जाता है और भूमि को अम्लीय बना देता है। इस अम्लता के निराकरण (उदासीनीकरण) के लिए भूमि में चूना मिलाने की आवश्यकता होती है। 100 किग्रा. अमोनियम सल्फेट जितनी अम्लता उत्पन्न करता है उसके निराकरण के लिए 110 किग्रा. चूने की आवश्यकता होती है। किसी मृदा में लगातार अमोनियम सल्फेट का प्रयोग नहीं करते रहना चाहिए। कार्बनिक खादों और सुपर फास्फेट के साथ इसे प्रयोग करने पर अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।

यूरिया CO(NH2)2 

आज यूरिया नाइट्रोजन का महत्वपूर्ण स्रोत है। इसमें 46 से 46.6% नाइट्रोजन होती है, जो वर्तमान में उपलब्ध सभी उर्वरकों से अधिक है। वह रबेदार सफेद रंग का रासायनिक उर्वरक है। यह पानी में घुलनशील होता है। यह वायुमण्डल से अपने अंदर नमी सोखता है जिससे बोरियों में कभी-कभी ढेले बन जाते हैं।

यूरिया का प्रयोग बुवाई के रूप में किसी भी तरह किया जा सकता है। इसमें कार्बन होने के कारण इसे कार्बनिक उर्वरक भी कहते हैं। मृदा में पहुँचने में यह हल्की अम्लीयता पैदा करता है। लेकिन यह मृदा और पौधों के लिए हानिकारक नहीं होती। यूरिया को मिट्टी में मिलाने के 24 घण्टे बाद ही अमोनिया के रूप में परिवर्तित होने लगता है। इसका प्रयोग सभी फसलों में किया जाता है लेकिन धान, गन्ना के लिए यह विशेष उपयोगी है। यह भूमि की संरचना को खराब नहीं करता है। नाइट्रोजन की अधिक प्रतिशत मात्रा होने के कारण इसकी नत्रजन सबसे सस्ती पड़ती है। बुवाई से फसल की कटाई तक कभी भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसको बोते समय खड़ी फसल में छिड़क कर या घोल के रूप में किसी भी प्रकार से प्रयोग कर सकते हैं खड़ी फसलों में इसका 2-3% का घोल छिड़का जाता है।

अग्रलिखित कारणों से यूरिया का उपयोग दिनोंदिन बढ़ रहा है—

(अ) नाइट्रोजन की ऊँची प्रतिशतता। 

(ब) इसकी नाइट्रोजन अन्य उर्वरकों से सस्ती होती है। 

(स) भूमि की भौतिक दशा खराब नहीं करती है।

(द) संक्षारिता का अभाव — अमोनियम सल्फेट आदि उर्वरक पत्तियों पर गिर जाने पर पत्तियों को जला देते हैं। लेकिन यूरिया के साथ ऐसी बात नहीं है। इसका जलीय घोल पत्तियों पर छिड़का जाता है तो पत्तियाँ इसे ग्रहण कर लेती हैं।

कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट (CAN)

इसका निर्माण नांगल में होता है। यह खाद कैल्सियम कार्बोनेट तथा अमोनियम नाइट्रेट का मिश्रण है। इसे किसान खाद व सोना खाद भी कहते हैं। सामान्य तौर पर 20% नाइट्रोजन होती है। परन्तु अब 25% नाइट्रोजन वाली कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट या सोना खाद के नाम से बाजार में मिलती है। यह भूरा या सलेटी दानेदार उर्वरक होता है जो पानी में घुलनशील होता है। इसकी नाइट्रोजन अमोनिया और नाइट्रेट दोनों रूप में होती है। नाइट्रोजन के साथ इसमें कैल्सियम भी होती है। यह भूमि में किसी तरह का विकार नहीं छोड़ता है। यह भूमि की भौतिक दशा को सुधारता है। इसका प्रयोग भूमि में बुवाई के समय अथवा टॉप ड्रेसिंग से किसी भी विधि में किया जा सकता है। पानी और खेतों में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

सोडियम नाइट्रेट (NaNO3)

यह सफेद रबेदार उर्वरक होता है। इसमें 16% नत्रजन होता है। यह जल में पूर्ण रूप से घुलनशील होता है। इसमें नत्रजन नाइट्रेट रूप में होती है। इसके प्रयोग के 3-4 दिन बाद ही इसका प्रभाव पौधों पर दिखाई पड़ने लगता है। खेत में अधिक नमी होने पर इसका निक्षालन हो जाता है। इसका प्रयोग खड़ी फसलों में लाभकारी होता है। मृदा में यह क्षारीयता उत्पन्न करता है। मृदा में प्रयोग करने पर नाइट्रेट का पौधे प्रयोग कर लेते हैं और सोडियम भूमि में बच जाता है, जो भूमि को क्षारीय बनाने में मदद करता है। इसे चिली साल्ट पीटर भी कहते हैं।

नत्रजन युक्त खादों का पौधों का प्रभाव 

नत्रजन एक प्रमुख पोषक तत्व है जिसकी पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। यह प्रोटीन का अंग होता है। नत्रजन प्रत्येक जीवित कोशिका में होती है। पौधों से अधिक उम्र के ऊतकों के अपेक्षा छोटे-छोटे पौधों में वृद्धि भागों (Growing Parts) में अधिक पायी जाती है। 

भूमि में नत्रजन की कमी होने पर

भूमि में नत्रजन की कमी होने पर पौधों का रंग पीला पड़ने लगता है। पौधों की बाढ़ कम हो जाती है। पौधे छोटे रह जाते हैं। बालियाँ और दाने छोटे रह जाते हैं और पैदावार कम होती है।

भूमि में नत्रजन की अधिकता होने पर

नत्रजन की अधिकता होने पर फसल में वानस्पतिक वृद्धि अधिक होता है। पौधे लम्बे हो जाते हैं, उनका तना कमजोर रहता है। अतः फसल गिरने की सम्भावना रहती है। पौधे कोमल हो जाते हैं, उनमें बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है और फसल देर से पकती है।

भूमि में नत्रजन की उचित मात्रा होने पर

मृदा में उचित मात्रा में नत्रजन होने पर पौधों का रंग गहरा हरा होता है। पौधों की वृद्धि अच्छी होती है। पत्तियाँ स्वस्थ होती हैं। पौधे में व्यात अच्छी होती है। फसल समय से पकती है तथा उपज अच्छी होती है।

नत्रजन के उर्वरकों के प्रयोग का तरीका तथा समय 

नत्रजन घुलनशील पोषक तत्व होता है तथा इसकी आवश्यकता पौधे को अंकुरण से अन्तिम समय तक होती है। लेकिन उर्वरक के रूप में नत्रजन को पौधों की वृद्धि काल तक दे देना चाहिए। नत्रजन के उर्वरकों को बुवाई के समय छिड़क कर अथवा कूंडों में बोया जा सकता है। इस कार्य के लिए सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल का भी प्रयोग किया जा सकता है।

खड़ी फसल में सिंचाई से पूर्व अथवा सिंचाई के बाद टॉप ड्रेसिंग द्वारा भी इसे दिया जा सकता है परन्तु इसे खेत में पहुँचने के बाद नमी की आवश्यकता होती है। यूरिया आदि उर्वरकों का 2-3% का घोल भी खड़ी फसल में बुवाई के 35-40 दिन बाद 10-15 दिन के अन्तर से 2-3 बार किया जा सकता है। इस प्रकार के घोल की 800-1000 लीटर मात्र एक हैक्टर के लिए पर्याप्त होती है।

दलहनी फसलों के लिए इसकी पूरी मात्रा प्रारम्भ में बुवाई के समय ही दे देना चाहिए। शेष फसलों में नेत्रजन की पूरी मात्रा में खेत में एक साथ कभी नहीं देनी चाहिए। इसकी मात्रा को 2-3 बार में देना चाहिए। ऊपर बताया जा चुका है कि पौधों का नत्रजन की आवश्यकता अंकुरण से अंत समय तक रहती है और खेत में नत्रजन अधिक समय तक एकत्रित न रहकर निक्षालय (Leaching) हो जाती है, अतः नत्रजन की मात्रा बुलई जमीन में 3 बार में और मटियार मृदा से 2 बार में देनी चाहिए। शुष्क जलवायु में नमी के कारण नाइट्रोजन प्रायः बुवाई पर या प्रथम सिंचाई तक दे देते हैं। नाइट्रोजन को सामान्यत: 1/3 भाग बुवाई के समय और 1/3 भाग बुवाई से 30-40 दिन बाद और शेष 1/3 भाग इसके 1 माह या आवश्यकतानुसार देनी चाहिए।

गन्ने जैसी फसल जिसकी अवधि 10-12 माह होती है। नत्रजन की कुल मात्रा 3-4 बार में बुवाई के समय पहली, दूसरी तथा तीसरी सिंचाईयों पर जुलाई से अगस्त तक देकर पूरी करते हैं।

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