राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अर्थ -Meaning of National Education Policy in Hindi

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का (अर्थ Meaning of National Education Policy in Hindi) 

राष्ट्रीय शिक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा के विकास के लिए बनायी जाती है। इसमें सम्पूर्ण राष्ट्र का कल्याण निहित होता है। इसमें जाति, धर्म, लिंग, व्यवसाय आदि भेदों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता है। राष्ट्र को एक मानकर ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण किया जाता है। अतः वह नीति जिसके आधार पर पूरे राष्ट्र की शैक्षिक गतिविधियों का संचालन तथा निर्माण होता है, राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहलाती है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अर्थ -Meaning of National Education Policy in Hindi

इसके सावधानीपूर्वक किये गये विकास पर ही राष्ट्र की प्रगति निर्भर करती है, अतः सम्पूर्ण राष्ट्र की प्रगति राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर ही निर्भर करती है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आवश्यकता (Need of National Education Policy in Hindi)

मानव बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन है। इसके सावधानीपूर्वक किये गये विकास पर ही राष्ट्र की प्रगति निर्भर करती है। प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति के विकास से कई समस्याएँ जुड़ी होती हैं । विकास की जटिल प्रक्रिया में शिक्षा की भूमिका एक उत्प्रेरक के समान होती है जिसे सुनियोजित करना तथा क्रियाशील और सश्रम संवेदनशील बनाना आवश्यक है। भारत का राजनीतिक तथा सामाजिक जीवन भी संक्रमण काल से गुजर रहा है। धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद, प्रजातन्त्र तथा व्यावसायिक नैतिकता जैसे स्वीकृत मूल्यों का निरन्तर ह्रास होने लगा है। शहरों तथा गाँवों के मध्य की खाई निरन्तर चौड़ी होती जा रही है । गाँवों को शिक्षित जनशक्ति का लाभ नहीं मिल पाता है। देश की जनसंख्या को नियन्त्रित करना तथा साक्षर बनाना बहुत आवश्यक है। व्यक्ति का जीवन निरन्तर जटिल होता जा रहा है। व्यक्ति को नवीन वातावरण में लाभान्वित होने में सफल बनाने के लिए नये प्रकार से मानव संसाधन विकसित करने की रूपरेखा जरूरी है। नयी पीढ़ी को निरन्तर सृजनशील होकर नवीन विचारों को आत्मसात् करना होगा तथा सामाजिक न्याय ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण आवश्यक होता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आवश्यकता वर्ष 1985 से पहले से ही अनुभव की जाती रही है। 1985 में जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति निर्धारित की गयी उसका आधार 1968 की शिक्षा नीति को बनाया गया है । यह निश्चित किया कि 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा की जाये और जिन महत्त्वपूर्ण घटकों को उस समय छोड़ दिया गया है अथवा जिनमें सफलता प्राप्त नहीं हुई है उन्हें 1985 की शिक्षा नीति में पुन: शामिल किया जाये । यह देखा गया कि 1968 की नीति लागू होने के बाद देश में शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। आज गाँवों में रहने वाले 90 प्रतिशत से अधिक लोगों के लिए एक किलोमीटर के फासले के भीतर प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध हैं । अन्य स्तरों पर शिक्षा की सुविधाएँ पहले के मुकाबले बढ़ी हैं। पूरे देश में शिक्षा की संरचना एवं सभी राज्यों द्वारा स्कूली पाठ्यक्रम में छात्रों तथा छात्राओं को एक समान शिक्षा देने की चाहत के कारण भी नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की आवश्यकता अनुभव की गयी।

वर्ष 1985 की शिक्षा नीति का निर्माण करते समय इस तथ्य को स्वीकार गया कि यह सच है कि 1968 की शिक्षा नीति के अधिकांश सुझाव कार्यरूप में परिणित नहीं हो सके, क्योंकि क्रियान्वयन की पक्की योजना नहीं बनी, न स्पष्ट दायित्व निर्धारित किये गये और न ही वित्तीय एवं संगठन सम्बन्धी व्यवस्थाएँ हो सकीं। नतीजा यह है कि विभिन्न वर्गों तक शिक्षा को पहुँचाने, उसका स्तर सुधारने और विस्तार करने और आर्थिक सुधार जुटाने जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य नहीं हो पाये और आज इन कमियों ने बड़ा रूप धारण कर लिया है। इन समस्याओं का हल निकालने हेतु ही नयी शिक्षा नीति, 1986 का निर्माण हुआ । नयी शिक्षा नीति असमानता को दूर करने तथा शैक्षिक अवसरों की समानता पर विशेष बल देगी।

महिलाओं की स्थिति में आधारभूत परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा का उपयोग किया जायेगा । स्त्री निरक्षरता तथा प्रारम्भिक तथा महिलाओं की पहुँच के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के कार्य को द्रुतगामी प्राथमिकता दी जायेगी।

अनुसूचित जातियों के शैक्षिक विकास में प्रमुख बात उनको अन्य जातियों के समान लाना है । इसके लिए प्रोत्साहन, पूर्वमैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, लगातार सूक्ष्म योजना, अनुसूचित जातियों के अध्यापकों की नियुक्ति तथा अनुसूचित जाति क्षेत्रों में बाल-बाडियों एवं प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों की स्थापना आदि उपायों को किया जायेगा।

अनुसूचित जातियों को अन्य जातियों के समान लाने के लिए जनजाति क्षेत्रों प्राथमिक स्कूल खोलने का प्राथमिकता देने, पाठ्यक्रम तथा जनजाति भाषाओं में अनुदेशन सामग्री विकसित करने, आवासीय स्कूल खोलना प्रोत्साहन योजनाएँ बनाने जैसे उपायों का यथाशीघ्र लागू किया जायेगा ।

शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े समस्त लोगों को, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, उपयुक्त प्रोत्साहन दिया जायेगा। पर्वतीय तथा रेगिस्तानी जिलों दूरवर्ती व अगम्य क्षेत्रों तथा दीर्घ शिक्षा संस्थाओं का वांछित प्रसार किया जायेगा ।

शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दिया जायेग 1 अपंगों के लिए जिला मुख्यालयों में विशेष स्कूल खोले जायेंगे उनके व्यावसायिक प्रशिक्षण की पर्याप्त व्यवस्था की जायेगी तथा अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम को इस तरह से पुनर्गठित किया जायेगा जिससे अध्यापक अपंग छात्रों की समस्याओं से निबट सके।

सतत् शिक्षा हेतु केन्द्र स्थापित करके, नियोक्ताओं, ट्रेड संघों व सम्बन्धित सरकारी संस्थाओं के द्वारा, मजदूर शिक्षा के द्वारा, रेडियो, टेलीविजन फिल्म, जनसंचार माध्यमों के एक व्यापक कार्यक्रम को लागू किया जायेगा ।

Post a Comment

Previous Post Next Post