शिक्षा (EDUCATION)
शिक्षा की संकल्पना (Concept of Education) - शिक्षा एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह मानव जीवन के जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक निरन्तर चलती रहती है। मानव जब जन्म लेता है तो वह विभिन्न बौद्धिक योग्यताओं एवं सांस्कृतिक तत्त्वों से युक्त होता है जो उसे अन्य पशुओं से भिन्न बनाते है।
शिक्षा मानव जाति का संरक्षण करती है तथा बौद्धिक योग्यताओं एवं सांस्कृतिक परम्पराओं को बनाए रखने में सहायता करती है शिक्षा ही एक ऐसी विस्तृत प्रक्रिया है जो मानव को अन्धकार, निर्धनता एवं संकट से बाहर निकालती है एवं व्यक्तित्व के समस्त पक्षों (शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक) का विकास करती है। अतः शिक्षा जीवन का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पक्ष है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य अपना आर्थिक विकास करता है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य पशु के समान रहता है। वह अपने आदर्शों, आकांक्षाओं, आशाओं, विश्वास, परम्परा तथा सांस्कृतिक विरासत को विकसित नहीं कर सकता ।
शिक्षा का शाब्दिक अर्थ (Literal Meaning of Education)
शिक्षा शब्द संस्कृत के 'शिक्ष' धातु से बना है, जिसका अर्थ 'सीखना' अथवा 'सिखाना' होता है। शिक्षा को अंग्रेजी में 'एजुकेशन' (Education) कहते हैं। 'एजुकेशन (Education) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'एजुकेटम' (Educatum) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है 'शिक्षित करना'। एजुकेटम भी दो शब्दों से मिलकर बना है ई (E) और ड्यूको (Duco)। ई का अर्थ 'भीतर से' और ड्यूको का अर्थ 'बाहर निकालना' (To Lead Out) अथवा 'आगे बढ़ाना' ।
इस प्रकार एजुकेशन अथवा शिक्षा का अर्थ है- 'अन्तः शक्तियों का बाहर की ओर विकास करना है। लैटिन भाषा के दो शब्द 'एजुसीयर' तथा 'एजुकेयर' भी शिक्षा के इसी अर्थ की ओर संकेत करते हैं। 'एजुसीयर' का अर्थ 'विकसित करना' अथवा 'निकालना' है तथा दूसरे 'एजुकेयर' का अर्थ है 'आगे बढ़ाना, बाहर निकालना या विकसित करना'। अतः शिक्षा का अर्थ आन्तरिक शक्तियों अथवा गुणों का विकास करना है।
शिक्षा का संकुचित अर्थ (Narrow Meaning of Education)
संकुचित अर्थ में शिक्षा से अभिप्राय बालक को विद्यालय में प्रदान की जाने वाली शिक्षा से है। अन्य शब्दों में, जब बालक को पूर्व-निश्चित योजना द्वारा वयस्क वर्ग निश्चित पद्धतियों से, निश्चित प्रकार का ज्ञान प्रदान करता है तो उसे संकुचित शिक्षा कहते हैं।
यहाँ पर शिक्षा, विशेष विद्यालय, विशेष शिक्षण, विशेष काल, विशेष पद्धति तथा विशेष पाठ्यक्रम तक निश्चित हो जाता है। विद्यालय में शिक्षक बालक को वही शिक्षा देता है जो समाज और बालक के उन्नयन के लिए आवश्यक है।
वास्तव में संकुचित शिक्षा से बालक को 'पुस्तकीय ज्ञान' (Bookish Knowledge) तो प्राप्त हो जाता है किन्तु उस तोते के समान रटी जाने वाली शिक्षा को प्रायः शिक्षा न कहकर उसे 'अध्यापन' या 'निर्देशन' (Instruction) कहा जाता है।
शिक्षा का वास्तविक अर्थ (Realistic Meaning of Education)
शिक्षा के वास्तविक अर्थ से तात्पर्य उस शिक्षा से है जिसमें संकुचित तथा व्यापक दोनों रूप निहित हों। वास्तविक अर्थ को समझने के लिए शिक्षा के विभिन्न अर्थों में समन्वय करना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति का सर्वागीण विकास होता है जो कि उसके जीवन को वैज्ञानिक एवं सामाजिक रूप से सफल बनाने में सहायक होती है।
शिक्षाशास्त्री रेमण्ट के अनुसार- शिक्षा मानव जीवन के विकास की वह प्रक्रिया है जो शैशव से प्रौढ़ावस्था तक चलती रहती है अर्थात् शिक्षा विकास का वह क्रम है जिससे मानव अपने आप को आवश्यकतानुसार भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुसार बना लेता है।"
शिक्षा एक त्रिभुजी प्रक्रिया
शिक्षाशास्त्रियों का कहना है कि शिक्षा एक त्रिभुजी प्रक्रिया है। शिक्षा के तीन अंग हैं शिक्षक, बालक और पाठ्यक्रम | शिक्षक और बालक के साथ-साथ पाठ्यक्रम भी शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है।
शिक्षा की प्रकृति (Nature of Education)
शिक्षा की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं में देखा जा सकता हैं-
(1) शिक्षा एक सोद्देश्य व सचेतन प्रक्रिया है
(2) शिक्षा अन्तःशक्तियों का सर्वांगीण विकास है।
(3) शिक्षा विकास की प्रक्रिया है।
(4) शिक्षा का अर्थ केवल विद्यालयों में प्रदान किए जाने वाले ज्ञान से नहीं है।
(5)शिक्षा एक प्रगतिशील परिवर्तन है।
(6) शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है।
(7) शिक्षा एक त्रिध्रुवी प्रक्रिया है।
(8) शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।
शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Education)
मनुष्य के जीवन में शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-
(1) व्यक्ति के मानसिक एवं बौद्धिक विकास के लिए।
(2) शारीरिक विकास के लिए।
(3) मनुष्य के चारित्रिक / नैतिक विकास हेतु ।
(4) व्यक्ति के संवेगों में सकारात्मक सुधार के लिए।
(5) मनुष्य के आध्यात्मिकता विकास हेतु ।
(6) मनुष्य को कुशल व्यावसायिक कौशल या आर्थिक कौशल (जीविकोपार्जन) की कला में सहायता प्रदान करने हेतु ।
(7) राष्ट्रीय विकास में सहायक।
(8) अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में सहायक ।
(9) मनुष्य में सामाजिकता के विकास हेतु ।
राष्ट्रीय जीवन हेतु शिक्षा के विभिन्न कार्य
राष्ट्र सम्बन्धी कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) व्यक्ति को सार्वजनिक हित सम्बन्धी कार्यों में सहायता देना ।
(2) भावात्मक एकता स्थापित करना।
(3) राष्ट्रीय एकता स्थापित करना एवं राष्ट्रीय विकास में सहायता देना।।
(4) मानवीय अधिकार तथा कर्त्तव्यों से अवगत (ज्ञान) कराना।
(5) राष्ट्रीय अनुशासन स्थापित करना।
6) अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में सहायक ।
शिक्षा के सामान्य उद्देश्य (General Objectives of Education)
किसी भी राष्ट्र एवं समाज के उत्तरोत्तर विकास हेतु शिक्षा में निम्नलिखित उददेश्य को सम्मिलित किया गया है-
(1) आध्यात्मिक चेतना (Objective के विकास of Spiritual का उद्देश्य Consciousness Development)—विश्व के अधिकांश लोग मनुष्य को मन, शरीर एवं आत्मा का योग मानते हैं जिसका विकास करना शिक्षा का सर्वप्रथम उददेश्य है। चूँकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, एवं चारित्रिक विकास की बात सभी करते हैं। मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यावसायिक विकास पर जोर देते हैं।
(2) अवकाश के सदुपयोग का उद्देश्य (Objective of Proper Use of Leisure Time ) - प्रायः व्यस्त जीवन शैली के कारण व्यक्ति सदैव अपने कार्यों में लगा रहता है। शिक्षा का उद्देश्य होता है कि वह व्यक्ति को अवकाश काल में अध्ययन, मनन एवं चिन्तन के अवसर प्रदान करें, उसका उचित प्रयोग करें। इसके लिए शिक्षा बच्चों को कला, संगीत, साहित्य एवं नृत्य आदि का अनुभव करने योग्य बनाने वाली होनी चाहिए।
(3) आत्माभिव्यक्ति का उद्देश्य (Objective of Self Expression)- शिक्षा के इस उद्देश्य के द्वारा बालक को अपनी योग्यता के प्रदर्शन का अवसर प्राप्त होता है। शिक्षा के माध्यम से ही आदर्श प्रदर्शन सम्भव है। अतः शिक्षा द्वारा बालक का स्वाभाविक विकास होना चाहिए तथा उसकी जिज्ञासा एवं आत्मगौरव को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए।
4) आत्मानुभूति का उद्देश्य (Objective Self of Feeling) - शिक्षा के इस उददेश्य के द्वारा बालक अपने विषय में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करता है एवं अपनी कनियों को कम करके अपनी क्षमताओं तथा रुचियों को बढ़ावा देता है। इससे आध्यात्मिकता को बल मिलता है, जिससे उसके विचारों में शुद्धता आती है व बालक में सर्वोत्तम गुणों का विकास होता है।
शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्य (Individual Objectives of Education)
वैयक्तिक उद्देश्य में व्यक्ति को प्रथम वरीयता दी जाती है, न कि समाज को। इसको मानने वाले, समाज की अपेक्षा व्यक्ति को बड़ा मानते हैं। उनके अनुसार व्यक्ति के बिना समाज का कोई अस्तित्व नहीं है क्योंकि व्यक्तियों के द्वारा ही समाज की उत्पत्ति हुई है। व्यक्तियों ने समय-समय पर संस्कृति, विज्ञान एवं सभ्यता के विकास में अपना योगदान दिया है। प्राचीनकाल में भी भारत, ग्रीस एवं अन्य पाश्चात्य देशों में शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्यों को महत्त्व दिया जाता था। मध्य काल में सामूहिक शिक्षा प्रचलन में थी, इस कारण व्यक्तित्व के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
वर्तमान युग में शिक्षा का दृष्टिकोण मनोवैज्ञानिक होने के कारण फ्रोबेल, पेस्टॉलॉजी, रूसो एवं नन आदि शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्यों को पुनः महत्त्व देना आरम्भ कर दिया। शिक्षा के वैयक्तिक उद्देश्यों को दो अर्थों में समझा जा सकता है ।
शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य (Main Objectives of Education)
शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है-
(1) आत्मानुभूति एवं आत्माभिव्यक्ति का उद्देश्य
(2) अवकाश के सदुपयोग का उद्देश्य
(3) आध्यात्मिक चेतना के विकास का उद्देश्य
(4) सांस्कृतिक सहिष्णुता का विकास करना ।
(5) लोकतन्त्र एवं लोकतन्त्रीय नागरिकता की शिक्षा ।
(6) राष्ट्रीय एकता एवं अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध को प्राप्त करना ।
(7) धार्मिक सहिष्णुता का विकास करना ।
(8) लोकतन्त्रीय गुणों का विकास करना ।
(9) नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना ।
(10) व्यावसायिक एवं उदार शिक्षा देना ।
वर्तमान भारत में शिक्षा के उद्देश्यों को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting the Objectives of Education in Present India)
वर्तमान भारत में शिक्षा के उद्देश्यों को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(1) समाज की आर्थिक स्थिति
(2) समाज की दार्शनिक विचारधाराएँ
(3) समाज की राजनीतिक स्थिति
(4) सामाजिक मूल्य एवं परम्पराएँ