क्या आपको पता है कि किसी जीव की एक जाति काफी लम्बे समय तक अपना अस्तित्व किस प्रकार ए रखती है। जबकि उसका जीवनकाल बहुत कम या निश्चित वर्षों तक ही होता है। इसके बाद उसकी हो जाती है। यह संभव होता है प्रजनन क्रिया के द्वारा । जीव अपने जीवनकाल में ही नए जीवों को प्रजनन द्वारा जन्म देता है। इससे जाति की निरन्तरता बनी रहती है और उस जीव की जाति लुप्त नहीं हो पाती है।
जनन के प्रकार (Type of Reproduction )
जीवों में प्रजनन की अनेक विधियाँ पायी जाती हैं। इन विधियों को निम्न भागों में बाँट सकते हैं:-
1.लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)
2.अलैंगिक जनन (Asexual 3.Reproduction) कायिक जनन (Somatic Reproduction)
1. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction):-
प्रजनन की इस विधि में नर एवं मादा के जनन अंग का होना आवश्यक है। पौधों में लैंगिक जनन- पौधों में लैंगिक जनन जानने से पूर्व पुष्प की संरचना का ज्ञान होना आवश्यक है।
पुष्प की संरचना (Structure of flower)
एक सामान्य पुष्प (सरसों) के निम्नांकित भाग होते हैं-
1. वाहय दल पुंज (Calyx ) - सरसों के पुष्प में इनकी संख्या चार होती है। ये हरे-पीले रंग के होते हैं। पुष्प की प्रत्येक दल को Sepal कहते हैं। कली अवस्था में ये दो कार्य करते हैं-
1. अपने अन्दर के भागों की रक्षा करना ।
2.प्रकाश संश्लेषण ।
2. दलपुंज (Corolla)-ये चटकीले पीले रंग के होते हैं। इनकी संख्या-4 होती है। प्रत्येक को दल Petal कहते हैं। चटक रंग के होने के कारण कीट पुष्प की ओर आकर्षित होते हैं।
3.पुमंग- (Androecium)-यह पुष्प की नर जनन रचना है। इसकी इकाई को पुंकेसर (Stamem) कहते हैं। सरसों के पुष्प में 6 पुंकेसर (चार बड़े तथा दो छोटे) होते हैं। प्रत्येक पुंकेसर के 3 भाग होते हैं। पुतन्तु (Filament) परागकोष (Pollensac) तथा योजी (connectiva) पुंकेसर के परागकोष में परागकण (Pollen grain) होते हैं। पुंकेसर के पक जाने पर परागकोष फट जाते हैं और परागकण बाहर आ जाते हैं।
4.जायांग (Gynoecium)-स्त्रीकेसर (Carpel) के समूह को जायांग कहते हैं। प्रत्येक स्त्रीकेसर के 3 भाग होते हैं- अंडाशय (Ovary) वर्तिका (Style) वर्तिकाग्र (Stigma ), अंडाशय में बीजाण्ड होते हैं। बीजाण्ड से बीज बनते हैं तथा अण्डाशय से फल (Fruit) बनता है।
परागण (Pollination)
पुष्प के पुंकेसर के परागकोष से परागकण निकलकर स्त्रीकेसर के वर्तिकाग्र पर पहुँचना परागण कहलाता है। परागण हवा, कीट, जन्तु आदि साधनों के द्वारा होता है।
परागण के प्रकार (Types of Pollination) - यह दो प्रकार का होता है-
1.स्वपरागण (Self Pollination)-नरागकण का उसी पुष्प अथवा उसी पौधे के किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचना स्वपरागण कहलाता है। द्विलिंगी पुष्पों में स्वपरागण की संभावना अधिक होती है।
2.पर-परागण (Cross Pollination)-परागकण का उसी जाति के किसी दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचना पर परागण कहलाता है। एकलिंगी पुष्पों में पर-परागण की संभावना अधिक होती है
परागकण का अंकुरण (Germination of Pollen grain) -
वर्तिकाग्र पर अनेक परागकण आ जाते हैं और उनका अंकुरण होता है। वर्तिका के आधे भाग तक सबसे पहले पहुँचने वाली परागनाल का आगे विकास होता है। शेष परागनाल नष्ट हो जाती है। परागनाल से होकर नर जनन केन्द्रक बीजाण्ड में आता है।
निषेचन (Fertilization)-
नर जनन केन्द्रक तथा मादा जनन केन्द्रक के संयुग्मन को निषेचन कहते हैं। निषेचन क्रिया के बाद अंडाशय से फल व बीजाण्ड से बीज का निर्माण होता है।
प्रकीर्णन (Dispersal)
फल और उनके बीज अनेक प्रकार से एक स्थान से दूर-दूर तक ले जाए जाते हैं। जैसे- हवा, कीट, जन्तु, जल तथा मनुष्य। फल और बीज का बिखरना प्रकीर्णन कहलाता है। प्रकीर्णन के लिए फल और बीजों में अनेक युक्तियाँ पायी जाती हैं। पक्षी फल को बीज सहित अन्यत्र दूर स्थान पर ले जाते हैं। पक्षी फल खाते हैं और बीज वहीं गिर जाते हैं। कुछ बीज हवा के द्वारा सुदूर ले जाए जाते हैं। इन पर रोयें जैसी रचनाएं उड़कर दूर जाने में मदद करती हैं। जो अनुकूल मौसम में उगते हैं।
अलैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction)-
यह निम्न श्रेणी के जीवों में होता है। अलैंगिक प्रजनन की अनेक विधियाँ है। जैसे-
1. द्विखण्डन तथा बहुखण्डन ( Binary Fission /Multiple Fission) - भोजन तथा वातावरण की अनुकूल परिस्थितियों में अमीबा, पैरामीशियम, यूग्लीना आदि दो भागों में बटते हैं।
2. मुकुलन (Budding) - वयस्क हाइड्रा में शरीर के किसी भाग पर धीरे-धीरे एक उभार बनता है जो अन्त में शिशु हाइड्रा का रूप ले
लेता है। यह हाइड्रा से अलग होकर नया जीव बन जाता है और स्वंतंत्र जीवन यापन करने लगता है।
3. पुनरूद्भवन ( Regeneration) - तारा मछली की कुछ जातियों में शरीर का एक हिस्सा टूट जाने पर उससे नया जीव बन जाता है इसे पुनरूद्भवन कहते हैं। छिपकली की पूँछ भी टूट जाने पर वह जीवन में केवल एक बार नई पूँछ उगा सकती है।
कायिक जनन (Vegetative Propagation)
पौधे की जड़, तना या पत्ती के द्वारा नए पौधे तैयार होना कायिक जनन कहलाता है। इसकी निम्न विधियाँ हैं-
1. जड़ द्वारा- जैसे- -शकरकन्द, डहेलिया आदि ।
2. तने द्वारा जैसे- गन्ना, गुलाब आदि ।
3. पत्ती द्वारा - जैसे- अजूबा, केलांशू, बिगोनिया आदि ।
पादप ऊतक संवर्धन (Plant Tissue Culture)
इसके लिए विभिन्न तकनीक का उपयोग किया जाता है। वनस्पति अंग को निर्जर्मित अवस्था में पोषक माध्यम में उगाते हैं। जब पौधा परिपक्व हो जाता है तो उसे मिट्टी में स्थानान्तरित कर दिया जाता है। इसके लिए प्रयोगशाला, उपकरण, पोषक - माध्यम तथा निर्जर्मीकरण की आवश्यकता होती है। अनेक अच्छे फल और फूल वाले पौधे इस विधि से उगाए जा रहे हैं।